SK नर्सरी हाउस बीकानेर में अंगूर के पौधे थोक दर पर उपलब्ध है। ग्राफ्टेड अंगूर का पौधा एक संकर पौधा है जो उच्च गुणवत्ता, रोग प्रतिरोधी क्षमता व रूटस्टॉक के सर्वोत्तम गुणों को जोड़ता है। ग्राफ्टेड अंगूर के पौधे से असाधारण स्वाद और उत्तम क़्वालिटी के साथ स्वादिष्ट अंगूर मिलते है। ग्राफ्टेड पौधा कीट और रोगों के लिए प्रतिरोधी भी होता है।
अंगूर के पौधे का वैज्ञानिक नाम विटिस विनीफेरा है और यह एक रसदार पौधा है। अंगूर हरे, बैंगनी या काले रंग का होते है। ग्राफ्टेड अंगूर की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली रेतीली, दोमट मिट्टी के साथ धूप वाली जगह और पनपने के लिए पर्याप्त पानी और पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इसमें अंगूर की व्यवसायिक खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। अंगूर के पौधे को गर्म मौसम पसंद है; इसकी खेती के लिए गर्म, शुष्क, तथा दीर्घ ग्रीष्म ऋतु अनुकूल रहती है। यह पौधा उच्च तापमान को सहन कर सकता है।
अंगूर एक स्वादिष्ट तथा स्वास्थ्य के लिए लाभकारी फल है। अंगूर के अनेको उपयोग हैं। फल के तौर पर खाने के अलावा इनसे किशमिश, मुनक्का, जूस, जैम और जैली भी बनाए जाते हैं। इसके अलावा इसका उपयोग मदिरा बनाने में भी किया जाता है। अंगूर में कई पोषक और लाभकारी तत्व पाए जाते हैं। इसमें मौजूद पॉली-फेनोलिक फाइटोकैमिकल कंपाउंड हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते है। अंगूर का सेवन कई बीमारियों में गुणकारी है तथा ये अंगूर कैंसर सेल्स, हार्ट अटैक के खतरे को कम करता है। डायबिटीज में भी इसका सेवन फायदेमंद बताया गया है। इसके अलावा ये कब्ज में भी असरकारक है। ये आंखों के लिए भी फायदेमंद होता है।
अपने बगीचे से ताजा, उत्तम फल प्राप्त कर सकते है इसके लिए आप अंगूर के पौधे का रोपण वसंत ऋतु (मार्च-अप्रैल माह) में करना चाहिए। अंगूर के इन पौधों को उगाना और देखभाल करना आसान है। बेलों को साधने हेतु 2.0 - 2.5 मीटर ऊंचाई पर लगी तारों के जाल पर बेलों को फैलाया जाता है। जाल तक पहुंचने के बाद इसके मुख्य शाखा के ताने को काट दिया जाता है ताकि पाश्र्व शाखाएं उग आयें। इस तरह द्वितीयक शाखाओं से 8-10 तृतीयक शाखाएं विकसित होंगी इन्हीं शाखाओं पर फल लगते हैं। अंगूर की लताओं को ऊपर की ओर बढ़ने के लिए सहारे की आवश्यकता होती है। इससे रोग का खतरा भी कम होगा। अंगूर की अधिकांश किस्में स्व-उपजाऊ होती हैं।और ये आपको साल दर साल भरपूर फसल देंगे।
अच्छी किस्म के अंगूर के गुच्छे मध्यम आकर, मध्यम से बड़े आकर के बीजरहित दाने, विशिष्ट रंग, खुशबू, स्वाद व बनावट वाले होते है। ये विशेषताएं सामान्यत: किस्म विशेष पर निर्भर करती हैं। अंगूर की फसल साल में एक बार ही आती है और इसमें फूल आने से लेकर फल आने तक लगभग 110 दिन का समय लगता है। इसके अच्छे विकास के लिए अच्छी मिट्टी और अच्छी जल निकासी व्यवस्था की आवश्यकता होती है। मिट्टी को नम रखने के लिए इसे भरपूर धूप और सप्ताह में एक या दो बार नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है। इस पौधे की वृद्धि के लिए हल्की खाद की जरूरत होती है।
बेलों से लगातार एवं अच्छी फसल लेने के लिए उनकी उचित समय पर कटाई व छंटाई करनी आवश्यक है। सामान्यत जनवरी माह में कटाई-छंटाई का काम पूरा कर देना चाहिए , क्योकि बाद में कोंपले फूटने की प्रक्रिया शरू हो जाती है। छंटाई की प्रक्रिया में बेल के जिस भाग में फल लगें हों, उसके बढ़े हुए भाग को कुछ हद तक काट देते हैं। यह किस्म विशेष पर निर्भर करता है। किस्म के अनुसार कुछ को केवल एक अथवा दो शाखाओं को छोडक़र शेष को काट देना चाहिए। छंटाई करते समय रोगयुक्त एवं मुरझाई हुई शाखाओं को हटा दें एवं बेलों पर ब्लाईटोक्स 0.2 प्रतिशत का छिडक़ाव अवश्य करें।
अंगूर की बेलों की छंटाई के साथ ही पानी की आवश्यक होती है। फूल से फल बनने (मार्च से मई) तक सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके सिंचाई कार्य में पर्यावरण और तापमान को ध्यान में रखते हुए 7-10 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। फलों के पकने की प्रक्रिया शुरू होते ही पानी देना बंद / कम कर देना चाहिए, नहीं तो फल फट सकते हैं और सड़ सकते हैं। फलों की तुड़ाई के बाद भी एक सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। अंगूर तोडऩे के बाद पकते नहीं हैं, अत : पकने के बाद ही तोडऩा चाहिए। फलों की तुडाई प्रात: काल या सायंकाल में करनी चाहिए।