"शमी वृक्ष महत्व और प्रभाव"
घर में पेड़-पौधे लगाने और उनकी पूजा करने से घर में खुशियां व समृद्धि आती हैं और घर में हमेशा लक्ष्मी का वास रहता है। शमी वृक्ष या खेजड़ी भी एक ऐसा अनोखा पेड़ है जो सभी दुखों व कष्टों निवारण कर समृद्धि देता है। ऐसा माना जाता है कि शमी का पेड़ घर में लगाने से देवताओं की कृपा बनी रहती है। शमी पत्र भोलेनाथ, गणपति व माता जी को प्रिय है। पीपल के बाद यही एकमात्र पेड़ है, जिसकी पूजा करने से शनिदेव के क्रोध और प्रकोप से बचा जा सकता है। शमी वृक्ष भगवान श्री राम का प्रिय वृक्ष है। रावण से युद्ध के पूर्व श्री राम ने शमी वृक्ष की पूजा कर लंका पर विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया था। आज भी कई जगहों पर 'रावण दहन' के बाद शमी के पत्ते स्वर्ण के प्रतीक के रूप में एक दूसरे को बाँटने की प्रथा हैं, इसके साथ ही महत्वपूर्ण कार्यों में सफलता मिलने कि कामना की जाती है।
कवियों और लेखकों के लिए शमी का बहुत महत्व है। भगवान चित्रगुप्त को शब्दों और लेखन का देवता माना जाता है और शब्द साधक यम-द्वितीया को जहां तक संभव हो शमी वृक्ष के नीचे शमी पत्र से पूजा करते हैं। शास्त्रों में नवरात्रि में शमी के पत्ते से मां दुर्गा की पूजा करने का विधान है। नवरात्रि में किसी भी दिन शाम को शमी वृक्ष की पूजा करने से स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति होती है। शमी पत्र शुभदायी होता है अतः भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शमी पत्र चढ़ाने चाहिए क्योंकि शमी पत्र शुभ और लाभ देने वाला होता है। भोलेनाथ को शमी के पत्ते चढ़ाने से धन, लक्ष्मी, वैभव और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
शमी वृक्ष भीषण गर्मी के महीनों में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तो शमी/खेजड़ी ही राहत देती है। गर्मियों में जब खाने को कुछ नहीं होता तो यह चारा देता है, जिसे लूंग कहते हैं। इसके फूल को मिंझार कहते हैं। इसके फल को सांगरी कहते हैं, जिससे सब्जी बनाई जाती है। जब इसका फल सुख जाता है तो इसे खोखा कहते हैं। इसकी लकड़ी मजबूत होती है, जिसका उपयोग किसान फर्नीचर बनाने और जलाने में करते है। इसकी जड़ से हल बनाया जाता है। अकाल के समय मरुभूमि के मनुष्य और पशुओं के लिए यही एकमात्र सहारा है। सन् 1899 (वि. स. 1956) में एक अकाल पड़ा जिसे छपनिया अकाल कहा जाता है, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ की टहनियों की छाल खाकर जीवन यापन किया था। शमी/खेजड़ी पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार अधिक होती है।
शास्त्रों में शमी वृक्ष का वर्णन एंव पूजा
लंका पर आक्रमण करने से पहले भगवान श्री राम ने विजय के लिए शमी वृक्ष की पूजा-अर्चना की थी। इसका उल्लेख शास्त्रों में मिलता है। अपने वनवास के अंतिम वर्ष (अज्ञातवास) में पांडवों ने इस वृक्ष में गांडिव धनुष को छुपाए जाने का उल्लेख भी शास्त्रों में मिलता है। यज्ञ की समाधि के लिए शमी वृक्ष की लकड़ी को पवित्र माना जाता है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शमी वृक्ष की पूजा की जाती है।
शमी शमयते पापं शमी शत्रु विनाशिनी। अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालं सुखं मया। तत्र निर्विघ्न कर्तृत्वं भवश्रीरामपूजिता।।
अर्थात - "शमी पापों का नाश करने वाले और शत्रुओं को परास्त करने वाले हैं। यह अर्जुन का धनुष धारण करने वाला व श्रीराम का प्रिय वृक्ष है। जिस प्रकार श्री राम ने शमी वृक्ष की पूजा की, वैसे ही हम भी करते हैं तो अच्छाई की जीत में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करता है और जीवन सुखमय हो जाता है।" अपने वनवास के अंतिम वर्ष में पांडवों ने इस वृक्ष में गांडिव धनुष को छुपाए जाने का उल्लेख मिलता है। कृष्ण जन्माष्टमी पर इसकी पूजा की जाती है। शमी शनि देव को प्रिय हैं इसलिए शमी की पूजा करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है और सभी कष्टों का नाश होता है।
शमी वृक्ष गणेश जी को बहुत प्रिय है। इसलिए भगवान गणेश की पूजा में शमी पत्र चढ़ाए जाते हैं। शमी पत्र में भगवान शिव का वास माना गया है। हिंदू धर्म में गणपति की आराधना सभी विघ्नों को दूर करके शुभ और लाभ प्रदान करने वाली मानी गई है। भगवान शिव की पूजा की तरह ही गणपति की पूजा में शमी पात्र का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है। गणपति से इच्छा पूर्ति के लिए साधक को बुधवार के दिन विशेष रूप से शमी पत्र अर्पित करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि शमी पत्र से पूजा करने पर भक्त को गणेश जी का पूरा आशीर्वाद मिलता है और उसके जीनव में गणपति की कृपा रहती है साथ ही व्यवसाय में वांछित प्रगति मिलती है। भगवान गणेश की पूजा में इस्तेमाल होने वाले इस पेड़ की पत्तियों का विशेष महत्व है। भगवान गणपति की पूजा के लिए श्री गणेश को शमी पत्र विशेष मंत्र से अर्पित करें-
त्वत्प्रियाणि सुपुष्पाणि कोमलानि शुभानि वै। शमी दलानि हेरम्ब गृहाण गणनायक।।
दशहरे के पर्व में शमी वृक्ष के पूजन का बेहद खास महत्व होता है। नवरात्री के दौरान भी शमी के पेड़ की पूजन करने का विशेष महत्व बताया जाता है। नवरात्री के नौ दिनों में प्रतिदिन सायं काल में इस पेड़ का पूजन करने से धन की प्राप्ति होती है। आज भी कई स्थानों पर दशहरे के दिन 'रावण दहन' के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते स्वर्ण के प्रतीक के रूप में एक दूसरे को बाँटने की प्रथा हैं, इसके साथ ही कार्यों में सफलता मिलने कि कामना की जाती है।
सावन का महीना भगवान शिव की पूजा के लिए बहुत ही खास और विशेष महत्व रखता है। इस पूरे महीने में पूजा और भक्ति का फल कई गुना ज्यादा होता है। सावन में किसी भी दिन भगवान शिव को शमी के पत्ते चढ़ाए जा सकते हैं। लेकिन अगर सावन के सोमवार को शमी के पत्ते चढ़ाए जाएं तो इससे विशेष लाभ होता है। इस दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान शिव के मंदिर में जाकर पूर्व की ओर मुख करके बैठ कर आराधना करें। इसके बाद कांसे या तांबे के बर्तन में जल लेकर उसमें थोड़ा गंगाजल, सफेद चंदन, चावल आदि मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। इसके बाद भगवान शिव का अभिषेक करते हुए "ओम नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें। इसके बाद शिवलिंग पर बिल्वपत्र, सफेद वस्त्र, जनेऊ, चावल, शमी के पत्ते प्रसाद सहित चढ़ाएं। शमी पात्र चढ़ाने के बाद धूप, दीप और कपूर से शिव की आरती कर प्रसाद ग्रहण करें। इस शुभ कार्य को करने से शनि, राहु-केतु के दोष दूर होते हैं। परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। शमी पत्र अर्पित करते समय इस मंत्र का जाप करना शुभ रहेगा-
अमंगलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च।
दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम्।।
ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव को एक आक का फूल चढ़ाने से सोने के दान के बराबर फल मिलता है, एक हजार आक के बराबर एक कनेर का फूल, एक हजार कनेर के फूल के बराबर एक द्रोण या गुमा का फूल। एक हजार द्रोण या गुमा के फूलों के बराबर एक चिचिड़ा फलदायी। एक हजार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, एक नीलकमल एक हजार कुश फूल के बराबर, एक धतूरा एक हजार नीलकमल के बराबर, एक बेलपत्र एक हजार धतूरों के बराबर और हजार बेलपत्रों से भी ज्यादा शमी पत्र शुभदायी होता है। इसलिए भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शमी पत्र चढ़ाने चाहिए। शमी पत्र शुभ और पुण्य देने वाला होता है। भगवान शंकर को शमी के पत्ते चढ़ाने से धन, लक्ष्मी, पुण्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में न्याय के देवता शनि को प्रसन्न करने के कई उपाय बताए गए हैं, जिनमें से एक है शमी वृक्ष की पूजा। शनि देव की दण्ड से बचने के लिए शमी के पौधे को घर में या घर के आस-पास शमी का वृक्ष लगाकर पूजा करनी चाहिए तथा शनिवार को इसके नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इसके अलावा शमी के फूल तथा पत्तों का भी प्रयोग शनि ग्रह के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता है। शनि महाराज को नौ ग्रहों में न्यायाधीश का स्थान प्राप्त है, इसलिए जब शनि की दशा आती है तो व्यक्ति को अच्छे कर्मों का अच्छा फल और बुरे कर्मों का दण्ड मिलता है। यही कारण है कि लोग शनि के प्रकोप से डरते हैं। शमी की पूजा करने से घर में नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मकता उत्पन्न होती है। जिससे साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है।
।। शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शन्नोदेवीरभिष्टय ।।
शमी वृक्ष की पूजा करने के लिए पूजन सामग्री तैयार कर लें। फिर प्रदोष काल में शमी वृक्ष के पास जाएं और सच्चे मन से प्रमाण के बाद शमी को शुद्ध जल अर्पित करें। यदि गंगाजल, नर्मदा जल या अन्य पवित्र नदियों का जल उपलब्ध हो तो अर्पित करें। उसके बाद तेल या घी का दीपक जलाकर प्रार्थना करें। शस्त्र पूजन करने के लिए शमी वृक्ष के नीचे अपने शस्त्र रख दें। वृक्ष सहित शस्त्रों को धूप, दीप, मिठाई अर्पित करने के बाद आरती कर पंचोपचार या षोडशोपचार की पूजा करें। साथ ही हाथ जोड़कर सच्चे मन से यह प्रार्थना करें।
।। शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी। अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ।।
।। करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया। तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ।।
इसका अर्थ है- हे शमी वृक्ष, आप ही पापों का नाश करने वाले और शत्रुओं को परास्त करने वाले हैं। आप ही थे जिन्होंने पराक्रमी अर्जुन का धनुष धारण किया था। साथ ही आप भगवान श्री राम को बहुत प्रिय हैं। ऐसे में आज हम भी आपकी पूजा कर रहे हैं. कृपया हमें आशीर्वाद दें और हमें सत्य और विजय के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करें। साथ ही, हमारी जीत के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करें और हमें जीत दिलाएं।
शमी की पूजा करने के बाद यदि आपको पेड़ के पास कुछ पत्ते गिरे हुए मिले तो उसको लाल कपड़े में बांधकर हमेशा के लिए अपने पास रख लें। इससे आपके जीवन की परेशानियां तो दूर होंगी ही साथ ही शत्रुओं से भी छुटकारा मिलेगा। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आपको अपने पेड़ से गिरे हुए पत्तों को उठाना है। स्वयं पेड़ से पत्ते नहीं तोड़ने है।
हाइब्रिड शमी (थार शोभा खेजड़ी )
“शमी का हाइब्रिड पौधा 'थार शोभा खेजड़ी' के नाम से जाना जाता है। थार शोभा किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है। हाइब्रिड शमी की खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है। थार शोभा खेजड़ी का पौधा एक साल में 3 से 4 फीट तक बढ़ता है। हाइब्रिड शमी को एक वर्ष तक देखभाल की आवश्यकता होती है। देशी शमी की तरह यह भी कम पानी में उगती है। दो वर्ष के बाद इसमें फल (सांगरी) आने लगते हैं। शमी में मार्च से जुलाई तक फल लगते है। इसकी पत्तियों को वर्ष में तीन बार लिया जा सकता है जो भेड़, बकरी, ऊंट आदि मवेशियों के लिए चारे के रूप में उपयोग किया जाता है। थार शोभा की बागवानी सांगरी, लुंग (चारा) के लिए की जाती है। हाइब्रिड रूप से तैयार शमी के पौध में रोग प्रतिरोधक क्षमता कई गुना ज्यादा होती है। प्राकृतिक रूप से बीज से उगने वाली खेजड़ी में आमतौर पर अच्छे किस्म की सांगरी केवल 15 - 20 प्रतिशत पेड़ो में ही पाई जाती है। क्योकि प्राकृतिक रूप से बीज से उगने के कारण इनमें काफी विविधता पाई जाती है। अन्य 80 प्रतिशत खेजड़ी लूंग, लकड़ी आदि की दृष्टि से उपयोगी होती हैं।”
SK Nursery House mainly deals in bulk order of Shami Plants














देशी शमी
देसी शमी (खेजड़ी) प्राकृतिक रूप से उगती है। यह मध्यम आकार का वृक्ष है। देशी खेजड़ी की लम्बाई 40 से 50 फ़ीट तक होती है। इसमें कांटे होते है। 8 -10 साल बाद फल देती है। इसके पत्ते चारे के रूप में काम आते है , जिन्हे लूँग कहते है।