SK नर्सरी हाउस बीकानेर में सागवन, सागौन या Teak Tree थोक दर पर उपलब्ध है। सागवन का पेड़ अपनी उच्च गुणवत्ता वाली लकड़ी के लिए प्रसिद्ध है। इसके पुष्प अनेक, छोटे, सफेद रंग के और मधुर महक वाले होते हैं। इसमें औषधीय गुण भी होते हैं।
सागवान की लकड़ी मजबूत होने के साथ-साथ बहुत महंगी भी होती है। इसलिए इसको व्यावसायिक रूप से भी उगाया जाता है। इसका उपयोग प्लाईवुड, जहाज, रेल के डिब्बे और कई प्रकार के मूल्यवान फर्नीचर बनाने में किया जाता है क्योंकि यह बहुत टिकाऊ होता है। इसके पौधों का उपयोग औषधि बनाने में भी किया जाता है। सागौन की लकड़ी में कई प्रकार के विशेष गुण पाए जाते हैं, जिसके कारण बाजारों में इसकी हमेशा मांग रहती है। सागौन की लकड़ी में दीमक कभी नहीं होती। जानकारी के अनुसार इसका पेड़ 200 साल तक जीवित रहता है।
सागवान में लंबे समय तक टिकने की क्षमता होने के कारण इसकी मांग हमेशा बाजार में बनी रहती है। सागवान की लकड़ी में बहुत कम सिकुड़न होती है। सागवान की लकड़ी अच्छे क्वालिटी की होने के कारण इस पर बहुत जल्दी पॉलिश चढ़ती है। सागवान के पौधे को 8 से 10 फीट की दूरी पर लगाया जा सकता है। जो आमतौर पर लगभग 90 से 120 फीट की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। सागवान के लिए 15 डिग्री सेल्सियस से लेकर 40 डिग्री सेल्सियस का तापमान अनुकूल माना जाता है।
इसको कई नामों से जाना जाता है जैसे अंग्रेज़ी में Indian Teak Tree (इण्डियन टीक ट्री), हिन्दी में सागौन, सागवन, सागु, उड़िया-सगौउन(Saguan), टेको (Teko), कन्नड़-जड़ी (Jadi), तड़ी (Tadi), गुजराती-सागा (Saga), सागवान (Sagwan), तेलुगु-थीक्का (Thekka), टेकु (Teku), तमिल-टेक्कु (Tekku), बंगाली-सेगून (Segun), शाक (Shak), माग (Maag), पंजाबी-सगून (Sagun), सागवान (Sagwan); मराठी-साग (Sag), सागा (Saga), सागवान (Sagwan), टेक्का (Tekka)।
सागवान की बुवाई के लिए प्री-मानसून का मौसम सबसे अनुकूल माना जाता है। इस मौसम में पौधा लगाने से उसका विकास तेजी से होता है। शुरूआती वर्षों में साफ-सफाई, छंटाई व सिंचाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। मानसून के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। गर्मी के महीने में आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। प्रयाप्त मात्रा में सिंचाई करने से उपज में काफी हद तक सुधार होता है।
सागवान, सागौन मुख्य रूप से भारत, बर्मा और थाईलैंड के मूल वृक्ष है, जो फिलीपीन द्वीप समूह, जावा और मलाया प्रायद्वीप में भी पाया जाता है। यह पेड़ भारत के कुछ राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात, उड़ीसा, राजस्थान और आंध्र प्रदेश आदि में बड़ी मात्रा में पाया जाता है।